महाराष्ट्र में 3 दिनों से जारी राजनीतिक उठा-पटक के बीच सोमवार काे सुप्रीम कोर्ट में विपक्षी दलों (शिवसेना, राकांपा-कांग्रेस) की याचिका पर डेढ़ घंटे सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। शीर्ष अदालत मंगलवार सुबह 10:30 बजे इस मामले में फैसला सुनाएगी। इससे पहले विपक्ष ने 24 घंटे में फ्लोर टेस्ट कराने की मां की। केंद्र की ओर से कहा गया कि फ्लोर टेस्ट सबसे बेहतर है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह 24 घंटे में ही हो। इस पर राकांपा-कांग्रेस के वकील ने कहा कि जब दोनों पक्ष फ्लोर टेस्ट चाहते हैं तो इसमें देरी क्यों हो रही है? कोर्ट के निर्देश परविपक्षी दलों को 154 विधायकों के हलफनामे वापस लेने पड़े।
जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच के सामने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (केंद्र), कपिल सिब्बल (शिवसेना), अभिषेक मनु सिंघवी (राकांपा-कांग्रेस), मुकुल रोहतगी (देवेंद्र फडणवीस), मनिंदर सिंह (अजित पवार) ने दलीलें पेश कीं। सुनवाई के दौरान कोर्टरूम खचाखच भरा हुआ था। कोर्ट में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान और शिवसेना के नेता गजानंद कृतकर भी मौजूद थे।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल मेहता की 3 प्रमुख दलीलें
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने महाराष्ट्र राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का पत्र सुप्रीम कोर्ट को सौंपा।
- फ्लोर टेस्ट पर: तुषार मेहता ने पूछा कि क्या अनुच्छेद 32 के तहत किसी याचिका में राज्यपाल के फैसले को चुनौती दी जा सकती है? राज्यपाल ने 9 नवंबर तक इंतजार किया। 10 तारीख को शिवसेना से पूछा तो उसने सरकार बनाने से मना कर दिया। 11 नवंबर को राकांपा ने भी मना किया। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाया गया।
- अजित के समर्थन पत्र की विश्वसनीयता पर: अजित पवार के गवर्नर को दिए पत्र में 54 विधायकों के हस्ताक्षर थे। अजित ने चिट्ठी में खुद को राकांपा विधायक दल का नेता बताया था। गवर्नर को खुद को मिले पत्र की जांच करने की जरूरत नहीं थी। फडणवीस को सरकार गठन के लिए बुलाने का फैसला उन्होंने सामने रखे गए दस्तावेजों के आधार पर लिया।
- विपक्ष के जल्द विधानसभा सत्र बुलाने की मांग पर: बेशक फ्लोर टेस्ट ही सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन कोई पार्टी यह नहीं कह सकती कि फ्लोर टेस्ट 24 घंटे में ही होना चाहिए। हमें जवाब दाखिल करने के लिए दो-तीन दिन का वक्त दें। प्रो-टेम स्पीकर के चुनाव जैसी विधानसभा की प्रक्रियाओं में दखलंदाजी नहीं कर सकते। कोर्ट गवर्नर को 24 घंटे के अंदर फ्लोर टेस्ट करवाने को नहीं कह सकता। राज्यपाल ने इसके लिए 14 दिन का वक्त दिया है। न्यायसंगत यह 7 दिन होना चाहिए।
- याचिकाकर्ताओं पर तंज: मेहता ने याचिकाकर्ताओं पर तंज कसते हुए कहा कि ये लोग एक याचिका दायर कर यहां पर आए हैं। ये अपने लिए एक वकील पर तो सहमत नहीं हो पाए तो गठबंधन पर कैसे सहमत हो पाएंगे? उनकी इस बात पर कोर्टरूम में मौजूद सभी हंस पड़े।
फडणवीस के वकील रोहतगी की 4 प्रमुख दलीलें
- सरकार गठन पर: मुकुल रोहतगी ने कहा- चुनाव से पहले गठबंधन में भाजपा के साथ रही शिवसेना ने नतीजों के बाद साथ छोड़ दिया। इसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाया गया। फडणवीस को बाद में राकांपा से समर्थन पत्र मिला। इसलिए वे 170 विधायकों के समर्थन के साथ राज्यपाल के पास गए। राष्ट्रपति शासन हटा और फडणवीस का शपथ ग्रहण हुआ।
- राकांपा में टूट पर: एक पवार (अजित) हमारे साथ हैं, एक (शरद) विपक्ष के साथ। उनके बीच कोई पारिवारिक विवाद रहा होगा। यह हमारे लिए चिंता की बात नहीं थी। वे हॉर्स ट्रेडिंग में शामिल रहे, हम नहीं।
- विधायकों के पत्र के गलत इस्तेमाल के आरोप पर: मौजूदा मामला 2018 के कर्नाटक मामले से अलग है। यहां राज्यपाल के सामने बहुमत दिखाने वाले सभी दस्तावेज मौजूद थे। कोई यह नहीं कह रहा कि विधायकों के हस्ताक्षरों के साथ गड़बड़ी हुई। राज्यपाल ने सभी पार्टियों को मौका दिया। उन्होंने अपने सामने मौजूद दस्तावेजों के जरिए समझदारी से फैसले लिए।
- कोर्ट द्वारा बहुमत साबित करने के सवाल पर: जस्टिस खन्ना ने पूछा- क्या फडणवीस आज बहुमत सिद्ध कर सकते हैं। रोहतगी ने कहा- सवाल यह है कि क्या कोर्ट इस मामले में कोई अंतरिम आदेश दे सकता है। क्या कोर्ट किसी निश्चित अवधि में फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कह सकता है। मेरे हिसाब से नहीं।'' रोहतगी ने कोर्ट से राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फैसले की न्यायिक समीक्षा न करने के लिए कहा।
शिवसेना के वकील सिब्बल की 2 प्रमुख दलीलें
- राष्ट्रपति शासन लगाने पर: कपिल सिब्बल ने कहा- सुबह 5:17 बजे राष्ट्रपति शासन हटाने और सुबह 8 बजे शपथ दिलवाने की नेशनल इमरजेंसी क्या थी? सुबह 5:17 बजे राष्ट्रपति शासन हटा। इसके ये मायने हैं कि सुबह 5:17 बजे से पहले सब कुछ तय हो चुका था।
- फ्लोर टेस्ट पर: विधानसभा में फ्लोर टेस्ट 24 घंटे में होना चाहिए। सदन का कोई वरिष्ठ सदस्य इसे सिंगल बैलेट और वीडियोग्राफी के साथ पूरा कराए। सब रात के अंधेरे में हुआ। नए अवसर दरवाजा खटखटा रहे हैं। दिन के उजाले में फ्लोर टेस्ट होने दें।
राकांपा के वकील सिंघवी की दलीलें
- समर्थन पत्रों के गलत इस्तेमाल पर: अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- ''जब दोनों ही समूह फ्लोर टेस्ट चाहते हैं तो इसमें देरी क्यों हो रही हैं? क्या राकांपा का कोई भी विधायक भाजपा गठबंधन में शामिल हुआ? क्या इस तरह के संकेत देता कोई भी पत्र मौजूद है? लोकतंत्र के साथ धोखाधड़ी की जा रही है। भाजपा गठबंधन ने बताया है कि उनके पास राकांपा के 54 विधायकों के पत्र हैं, जिनमें अजित पवार को विधायक दल का नेता चुना गया है। इन पत्रों पर भाजपा को समर्थन देने के लिए दस्तखत नहीं लिए गए थे। राज्यपाल इसे नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं?''
- सिंघवी को 154 विधायकों के समर्थन पत्र सौंपने की अर्जी वापस लेनी पड़ी: सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से कहा, ''आप 154 विधायकों के हलफनामों के साथ दाखिल नई अर्जी वापस लें, क्योंकि इसे भाजपा के सुपुर्द नहीं किया गया। आप कोर्ट में जो भी दाखिल करें, उसकी एक प्रति दूसरे पक्ष को भी देनी चाहिए। आप याचिका का दायरा ऐसे नहीं बढ़ा सकते।'' इसके बाद सिंघवी ने यह अर्जी वापस ले ली।
अजित पवार के वकील मनिंदर की दलील
- असली राकांपा कौन: मनिंदर सिंह ने कहा- ''अजित ही राकांपा का नेतृत्व करते हैं और महाराष्ट्र के राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए फडणवीस को न्योता देकर सही किया।''
बयानऔर सोमवार के अपडेट्स...
राकांपा के 3 विधायक जो अजित पवार के शपथ ग्रहण के बाद से गायब थे, सोमवार सुबह मुंबई लौट आए। कहा जा रहा है कि वे गुड़गांव के होटल में रुके थे। इनमें विधायक दौलत दरौडा, नितिन पवार और अनिल पाटिल शामिल हैं। राकांपा की छात्र इकाई सोनिया दुहान का आरोप है कि विधायकों को होटल में बंधक बनाकर रखा गया था। वे एनसीपी यूथ कांग्रेस के कुछ नेताओं के साथ यहां पहुंची और उन्हें छुड़ाकर मुंबई भेजा। सोनिया के मुताबिक, हरियाणा के मुख्यमंत्री के पीए समेत 150 कार्यकर्ता इनकी सुरक्षा में तैनात थे।
शरद पवार सोमवार कोमहाराष्ट्र के कराड मेंपूर्व मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए।उन्होंनेकहा- पार्टी में कोई एक व्यक्ति तय चीजें नहीं करता, पूरी पार्टी तय करती है कि किसके साथ जाना है किसके साथ नहीं। कांग्रेस, शिवसेना और राकांपा मिलकर सरकार बनाने वाली थी। अजित के फैसले से पार्टी का कोई कोई लेना-देना नहीं। उनसे कोई बातचीत नहीं हुई। हमें 5 साल सरकार चलानी थी। दो अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों को एक साथ लाना था, इसलिए इतना समय लगा। जॉर्ज फर्नांडीस जैसे लोगों के साथ भी अटल जी ने सरकार बनाई, तब भी हमने देखा उस समय वाजपेयी साहब ने सबको इकट्ठा बैठाया। भाजपा के जितने भी विवादित इश्यू थे, उनको किनारे रखा और एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तय करके सरकार चलाई।
राकांपा नेता नवाब मलिक ने कहा- गुड़गांव से राकांपा के 2 और विधायकों के लौटने के बाद हमारे साथ 52 विधायक हो गए हैं। एक संपर्क में है। अजित पवार ने गलती की, उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना चाहिए। राकांपा-कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन के पास 165 विधायकों का बहुमत है। देवेंद्र फडणवीस को भी मुख्यमंत्री पद छोड़ना चाहिए, क्योंकि उनके पास बहुमत नहीं है। अगर वे इस्तीफा नहीं देते हैं तो हम उनकी सरकार को फ्लोर टेस्ट में हरा देंगे